Book Title: Pathikvagga Tika
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 193
________________ १६८ दीघनिकाये पाथिकवग्गटीका (१०.३०५-३०५) पगेव अपवादा अभिनिविसन्ति, ततो परं उस्सग्गो पवत्तति, ठपेत्वा वा अपवादविसयं तं परिहरन्तोव उस्सग्गो पवत्ततीति, आयो हेस लोके निरुळ्होति ।। ढे कथाति “सब्बसङ्गाहिका, असम्भिन्ना चा"ति (दी० नि० अट्ठ० ३.३०५) अनन्तरत्तिके वुत्ता द्वे कथा । तत्थ वुत्तनयेन आनेत्वा कथनवसेन वेदितब्बा। तस्मा तत्थ वुत्तअत्थो इधापि आहरित्वा वेदितब्बो “नेक्खम्मधातुया गहिताय इतरा द्वे गहिताव होन्ती"तिआदिना। सुञतटेनाति अत्तसुञताय । कामभवो कामो उत्तरपदलोपेन सुझतठून धातु चाति कामधातु। ब्रह्मलोकन्ति पठमज्झानभूमिसञ्जितं ब्रह्मलोकं । धातुया आगतहानम्हीति "कामधातु रूपधातू''तिआदिना धातुग्गहणे कते । भवेन परिच्छिन्दितब्बाति “कामभवो रूपभवो''तिआदिना भववसेन तदत्थो परिच्छिन्दितब्बो, न याय कायचि धातुया वसेन | यदग्गेन च धातुया आगतछाने भवेन परिच्छेदो कातब्बो, तदग्गेन भवस्स आगतहाने धातुया परिच्छेदो कातब्बो भववसेन धातुया परिछिज्जनतो । निरुज्झति किलेसवट्टमेत्थाति निरोधो, सा एव सुझतठून धातूति निरोधधातु, निब्बानं । निरुद्धे च किलेसवढे कम्मविपाकवट्टा निरुद्धा एव होन्ति । हीनधातुत्तिको अभिधम्मे (ध० स० तिकमातिका १४) हीनत्तिकेन परिच्छिन्दितब्बोति वुत्तं “हीना धातूति द्वादस अकुसलचित्तुप्पादा"ति । ते हि लामकट्टेन हीनधातु । हीनपणीतानं मज्झे भवाति मज्झिमधातु, अवसेसा तेभूमकधम्मा । उत्तमढेन अतप्पकढेन च पणीतधातु, नवलोकुत्तरधम्मा। पञ्चकामगुणा विसयभूता एतस्स सन्तीति पञ्चकामगुणिको, कामरागो । रूपारूपभवेसूति रूपारूपूपपत्तिभवेसु यथाधिगतेसु । अनधिगतेसु पन सो पत्थना नाम न होतीति भववसेन पत्थनाति इमिनाव गहितो। झाननिकन्तीति रूपारूपज्झानेसु निकन्ति । भववसेन पत्थनाति भवेसु पत्थनाति । एवं चतूहिपि पदेहि यथाक्कम महग्गतूपपत्तिभवविसया, महग्गतकम्मभवविसया, भवदिट्ठिसहगता, भवपत्थनाभूता च तण्हा "भवतण्हा"ति वुत्ता। विभवदिट्टि विभवो उत्तरपदलोपेन, विभवसहगता तण्हा विभवतण्हा। रूपादिपञ्चवत्थु कामविसया बलवरागभूता तण्हा कामतण्हाति पठमनयो, “सब्बेपि 168 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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