Book Title: Pathikvagga Tika
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri
View full book text
________________
[१८]
नियमलक्खणन्ति - १८४ निय्यातीति - ३, ५७, ८० निय्यानट्टेनाति – ५९
निय्यानसीलोति - ५७ निय्यानिको - ५७
निरत्थकचित्तसमुदाचारो - ४९
निरन्तरपूरितोति - ३०
निरयगामिनीया - १७०
निरयो - २१८ निरुत्तिपटिसम्भिदा - ४८
निरोगोति- १९२
निरोधतण्हाति - १६९ निरोधधम्माति - १०५,२५७
निरोधधातु - १६८
निरोधसच्चं - २१०
निरोधसमापत्ति - ५०
निरोधाति - २३७ निरोधानुपस्सनाञाणेति - २२९
निरोधोति - २५३ निल्लज्जताति - १५५
निवातवृत्तीति - १३०
निवापो - १५
निविट्ठाति – ३७ निवुत्थवसेनाति - ९१
निवेसेन्तीति - १२५
निस्सरणपञ्ञ - २०३
निस्सरणीयाति - २२३
निस्सरणं - २०३, २०४, २२३, २५३
निस्सारदाति - १३६
निस्सितन्ति - ८५
नीवरणादिपापधम्मानं - २०८
नेक्खम्मन्ति - २०६ नेक्खम्मवितक्कोति - १६६ नेक्खम्मसुखं - ७२ नेताति - १३१ नेमि अभिमुखन्ति - २५
Jain Education International
दीघनिकाये पाथिकवग्गटीका
न्हातकिलेसत्ताति - १३५
पकतियाति - ४२ पकतिलोकियमनुस्सानं - ६० पक्खिकं - २०४
गुणन्ति - २५९
पगुणसमापत्तियोति - २५९ पच्चक्खञाणन्ति - ५५
पच्चताळेसीति -२३
पच्चत्थिको - ९४
पच्चनीकदिट्ठीति - २८
पच्चनीकधम्मानं - ७३ पच्चनुभवतीति – ४६ पच्चन्तिमं - ५५ पच्चयअप्पिच्छो- २५८
18
पच्चयोति - १४९, १५९, २५१ पच्चवेक्खणञाणन्ति - २४४
पच्चवेक्खणनिमित्तं - २५६
पच्चवेक्खणपञ्ञा - १५७, २५१
पच्चामित्तो - ९४
पच्चुपट्ठितकामाति - १८५
पचुपादीति - २३
पच्चेकबुद्धो - ५१
पच्छाभत्तन्ति - ५१ पच्छिमकपटिवेधतो - ७५
पच्छिमकसीलभेदतो - ७५
पजहनत्थन्ति - ८८
पजहन्तस्साति - २०७, २४३
पञ्चकामगुणा - १६८ पञ्चकामगुणिको - १६८
पञ्चक्खन्धाति - ३६
पञ्चङ्गविप्पहीनो- - ३६ पञ्चञाणिकोति - २५६ पञ्चद्वारिककायोति - १८९
For Private & Personal Use Only
[प-प]
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338