Book Title: Pathikvagga Tika
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 315
________________ [२६] यसो - ११७, १७० याथावा- १७०, २३३ यातुन्ति - २०१ यामोति -- १३३ युत्तकथन्ति - १२२ युत्तपटिभानो - ६९ यूपो - ३१ योगकम्मं - २१०, २५९ योगो - २१५ योनियोति - २१५ योनिसोमनसिकारोति - २५२ रजनन्ति - ९६ रजनीयट्टेनाति – १६९ रतनमयसिलापथवियं - ३७ रत्तकमलं - २१७ रत्ति - ४१, १३७ रथियन्ति - २०० रभसाति - १४४ रवा - ४९, १७६, १७७ रसग्गसग्गा - १०८ रसग्गसग्गिलक्खणं - १०८ रसग्गसग्गी - १०८ रसितानि - ९८ रस्मिविस्सज्जनं - ७५ रहस्सङ्गन्ति - १३८ रागनिमित्तं - २२७ रागादिसदिसो - १८७ रासीकतन्ति - ९३ रुचि - १८७ रूप्पतीति - १५४ रूप्पनन्ति - १५४ रूपकायपरिसुद्धिम्पि - २२१ रूपक्खन्धगणनन्ति - १७९ Jain Education International दीघनिकाये पाथिकवग्गटीका 26 रूपक्खन्धगोचरं - २११ रूपक्खन्धोति - १७९ रूपतण्हा - १६९ रूपधम्मा - १५८ रूपनिरोधेति – १०४ रूपप्पतिट्ठे – २११ रूपयतीति - १५८ रूपरागो - १६९ रूपवेदनादिसङ्घारनिमित्तं - २२७ रूपावचरचतुत्थज्झानं - ६४, १५० रूपावचरसमापत्तियो - ५० रोगब्यसनादीसु - २१९ रोगो - १४० ल लक्खणानिसंसोति - ९५ लक्खणारम्मणिकविपस्सनावसेन - १०४ लग्गचित्तताय - २१८ लज्जवं - १५८ लज्जासभावसण्ठिताति - १५५ लज्जीभावो - १५८ लाभसिद्धिया – १२७ लाभो - २३५ लामकन्ति - ७२ लामकाचारोति - २४० लिङ्गविपल्लासं – १५५ खाजीविन्ति - १७ डुट्ठानन्ति - २३ लेणं - २०५ लेसोति - १३४ लोकधम्मा- २३५ लोकधातूति - ७५ लोकनाथो - ९९ लोकपञ्ञत्तिन्ति - ३ लोकियगुणानं - १४७ For Private & Personal Use Only [र-ल] www.jainelibrary.org

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