Book Title: Pathikvagga Tika
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri
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( १०.३४२-३४५)
दसकवण्णना
अञ्ञत्र सुद्धावासेहि देवेही 'ति वचनतो । यदि एवं कस्मा इध न गहिताति तथ कारणमाह ‘“असब्बकालिकत्ता ''तिआदि । वेहप्फलो पन चतुत्थंयेव सत्तावासं भजतीति दट्ठब्बं ।
३४२. ओपसमिकोति वट्टदुक्खस्स उपसमावहो, तं पन वट्टदुक्खं किलेसेसु उपसन्तेसु उपसमति, न अञ्ञथा, तस्मा “ किलेसूपसमकरो " ति वृत्तं । तक्करं सम्बोधं गमेतीति सम्बोधगामी ।
यस्मिं देवनिकाये धम्मदेसना न वियुज्जति सवनस्सेव अभावतो, सो पाळियं "दीघायुको देवनिकायो 'ति अधिप्पेतोति आह " असञ्ञभवं वा अरूपभवं वा ''ति ।
३४३. अनुपुब्बतो विहरितब्बाति अनुपुब्बविहारा । अनुपटिपाटियाति अनुक्कमेन । समापज्जितब्बविहाराति समापज्जित्वा समङ्गिनो हुत्वा विहरितब्बविहारा ।
३४४. अनुपुब्बनिरोधाति अनुपुब्बेन अनुक्कमेन पवत्तेतब्बनिरोधा । तेनाह “ अनुपटिपाटिया निरोधा "ति ।
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नवकवण्णना निट्ठिता ।
२३७
दसकवण्णना
३४५. येहि सीलादीहि समन्नागतो भिक्खु धम्मसरणताय धम्मेनेव नाथति इसति अभिभवतीति नाथोति वुच्चति, ते तस्स नाथभावकरा धम्मा " नाथकरणात
आह
“सनाथा...पे०... पतिट्ठाकरा धम्मा "ति । तत्थ अत्तनो पतिट्ठाकराति यस्स नाथभावकरा, तस्स अत्तनो पतिट्ठाविधायिनो । अप्पतिट्ठो अनाथो, सप्पतिट्टो सनाथोि पतिट्ठत्थो नाथत्थो ।
कल्याणगुणयोगतो
कल्याण
दस्सेन्तो
237
"सीलादिगुणसम्पन्ना "ति
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आह ।
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