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१. आवश्यक नियुक्ति की गाथाओं के अनुसार पार्श्व अविवाहित रहे थे यह स्पष्टतः ज्ञात होता है । देखिए -
वीरं अरिट्ठनेमिं पासं मल्लिं च वासुपुज्जं च ।
एए मुत्तूण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥ २२१ ॥
रायकुले वि जाया विसुद्धवंसेसु खत्तिअकुले |
न य इत्थिआभिसेआ कुमारवासंमि पव्वइया ||२२२||
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आश्यक निर्युक्ति, आगमोदय समिति, बम्बई, १९२०, पत्रांक १३६ ।
उपयुक्त उद्धरण के अनुसार यह ज्ञात होता है कि पार्श्व ने स्त्री और अभिषेक के विना कुमारावस्था में प्रत्रज्या ली । इसके विपरीत मलयगिरि और हरिभद्रसूरि ने इन गाथाओं का अर्थ करते समय न य इत्थिआभिसेआ की जगह न य इच्छिआभिसेआ पाठ स्वीकार किया है । जिसका अर्थ निकलता है अभिषेक की इच्छा ही नहीं की और दीक्षा ले ली । विवाह अथवा स्त्री का प्रसंग उन्होंने उठाया ही नहीं है । इसके साथ ही आवश्यकचूर्णकार ने इन गाथाओं की व्याख्या ही नहीं की है । देखिए
आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति, प्रथम भाग, श्रीआगमोदयसमिति, बम्बई, १९३२, पत्रांक २०४ ।
इतका प्रभाव हेमचन्द्राचार्य पर रहा। फलस्वरूप वासुपूज्य चरित्र लिखते समय उन्होंने मल्लि, नेमि के साथ पार्श्व को भी अविवाहित ही बतलाया है देखिए
मल्लिनेमिः पार्श्व इति भाविनोपि त्रयो जिनाः । अकृतोद्वाहसाम्राज्याः प्रव्रजिष्यंति मुक्तये ॥ १०३ ॥
श्रीवीरश्चरमश्चार्हन्नीषभोग्येन कर्मणा । कृतोद्वाहोऽकृतराज्यः प्रब्रजिष्यति सेत्स्यति ॥ १०४ ॥
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, आगमोदयसमिति, भावनगर, वि० सं० १९६२ वासुपूज्यचरित्र, पर्व ४, सर्ग २ ।
परन्तु श्वेताम्बर परम्परा पार्श्व को विवाहित मानती है अतः हेमचन्द्राचार्यने त्रिषष्टिः में ही जब पाश्व का चरित्र चित्रण किया तब उन्होंने उनको विवाहित बतलाया है ।—
देखिए - पार्श्वनाथचरित्र, पर्व ९, सर्ग ३, पृ० २०३१, भावनगर, वि० सं० १९६४ ।
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