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नक्षत्र के योग में, पौष कृष्ण एकादशी के दिन हुआ था। उनका गोत्र काश्यप था। वाराणसा के नरेश अश्वसेन उनके पिता थे और रानी वामादेवी उनकी माता थीं। वे पंचविशाखा वाले थे। उनकी ऊँचाई नौ हाथ थी। उनका वर्ण नीला या हरा था। उनका विवाह कुशस्थल के राजा प्रसेनजित् की पुत्री प्रभावती के साथ सम्पन्न हुआ था । तीस वर्ष की आयु तक वे गृहस्थाश्रम में रहे तत्पश्चात् सत्तर वष तक उन्होंने श्रमणपर्याय का पालन किया। उनकी कुल आयु सौ वर्ष की थी। उनका धर्म-काल दो सौ पचास वर्ष चला । उनका निर्वाण सम्मेदाचल पर्वत के शिखर पर हआ था । पार्श्व का समय :
___श्रीपाश्व भगवान् महावीर से दो सौ पचास वर्ष पूर्व हुए थे । आपके समय के विषय में मतैक्य नहीं है।
दिगंबर आचार्य गुणभद्र के अनुसार श्रीपाश्व का अस्तित्व काल ईस्वी पूर्व नौवों शताब्दी ठहरता है।
जार्ज शाण्टियर के मतानुसार ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में पार्श्व हुए थे।
आवश्यकनियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति (पृ. २४१) के अनुसार भगवान पाश्व का अस्तित्व काल ईस्वी पूर्व दसवीं शताब्दी है ।
एच. सी. राय चौधरी ने लिखा है कि जैन तीर्थ कर पाश्व का जन्मकाल ईसा पूर्व ८७७ और निर्वाणकाल ईसा पूर्व ७७७ है। ___पाश्व के समय के विषय में जो यह मतभेद दृष्टिगोचर होता है उसका मूल कारण यह है कि किसी ने पार्श्व का निर्वाण महावीर से दो सौ पचास वर्ष पूर्व माना है; किसी ने पाश्व' के जन्म के दो सौ पचास वष पश्चात महावीर का जन्म माना है और किसी अन्य विद्वान् ने भगवान पार्श्व के जन्म के पश्चात् दो सौ पचास वष' बाद भगवान महावीर का निर्वाण माना है।
जैन साहित्य और इतिहास के प्रकाण्ड पण्डित श्री जुगलकिशोर मुख्त्यार का कथन है कि वास्तव में पार्श्वनाथ के निर्वाण से महावीर का निर्वाण ढाई सौ वर्ष पश्चात् हुआ था। अपने इस कथन के समर्थन में उन्हों ने उत्तरपुराण का एक श्लोक उदधृत किया है
पार्श्वशतीर्थसंताने पञ्चाशद्विशताब्दके ।। तदभ्यन्तरवायुर्महावीरोऽत्र जातवान् ॥
-उत्तरपुराण ७४ ।। २७९ 1. उत्तरपुराण, श्रीगुणभद्राचार्य, काशी, १९५४, पर्व ७४, पृ. ४६२ ! 2. कल्पसूत्र, देवेन्द्रमुनि शास्त्री, सिबाना, १९६८, पृ. २१ ।। 3. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश,'
पं. जुगलकिशोर मुख्त्यार, वीर शासन संघ, कलकत्ता, १९५६, पृ. ३१ ।
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