Book Title: Parshvanatha Charita Mahakavya
Author(s): Padmasundar, Kshama Munshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 201
________________ ८४ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्ये Jain Education International जगत्त्रयश्रीविजयस्य सूचिका बभौ त्रिरेखा किल कण्ठकन्दली । इयं मृगाक्ष्या गुणिना परिष्कृता सुवृत्तहारेण गुणानुकारिणा सुकोमलाङ्गया मृदुबाहुवल्लरी द्वयं बभौ लोहितपाणिपल्लवम् । नखांशु पुस्तकं प्रभास्वराड ङ्गदाssलवा लघुतिवारिसङ्गतम् ॥२२॥ तदसदेशौ दरनिम्नतां गतौ सुराद्रिकूटात पार्श्वयाः श्रियम् । "बला दिवाऽऽजहूतुरात सङ्गरौ निजश्रिया भसित हंस पक्षती मुखं सुमुख्याः स्मितकौमुदीसितं जहास राकातुहिनांशुमण्डलम् । कटाक्षपातव्यतिषङ्गचातुरी विहाय चन्द्रं जडमङ्क पङ्किल ॥२१॥ धुरीणमध्यन्तजडात्मकं नु तत् ॥२४॥ सरोरुहं पङ्ककलङ्कदूषितम् । उवास लक्ष्मीरकलङ्कमुच्चकै ॥२३॥ गिति प्रतर्येव तदीयमाननम् ॥२५॥ (२१) तीन रेखा वाली इस मृगाक्षी कन्या की कण्ठ कन्दली लोकत्रय के विजय की सूचक ऐसी गुण' (डोरी) का अनुकरण करनेवाले और गुणयुक्त (डोरी में पिरोये हुए) गोलाकार हार से अतिशय शोभायमान थी । (२२) उस अत्यन्त कोमल अङ्गवाली कन्या की चमकीले अङ्गदरूप भालवाल के द्युतिरूप वारि से युक्त, नखांशुरूप पुष्पगुच्छ बाली, कुंकुमवर्ण वाले कररूप (रक्त) पल्लव वाली दो कोमल बाहुरूप लताएँ शोभायमान थीं । (२३) युद्ध का जिन्होंने आश्रम लिया ऐसे उस कन्या के कुछ झुके हुए कन्धे Herda के शिवर के तटरहित दो पात्रों की ( बाजुओं की ) शोभा को हठात् हरण करते ये और अपने सौन्दर्य से हंस के दो पङ्खों को तिरस्कृत करते थे । (२४) चारुवदनी का हँसता हुआ वह मुख स्मितरूपी कौमुदी से धवल, कटाक्षों के द्वारा (एक दिल को दूसरे दिल से) जोड़ने की श्रेष्ठ चातुरीवाला और मुग्ध कर देने वाला, कौमुदी स्मित से फलक (ट) के साथ पासाओं के पात का मेल कराने की श्रेष्ठ चातुरीवाला और शीतल स्वभाववाला चन्द्र तो नहीं ? ( २५ ) शीतल और कलङ्क से दूषित चन्द्र को छोड़कर तथा कादव के दो से दूषित कमल को छोड़कर लक्ष्मी "उसका मुख अत्यन्त निष्कलङ्क है" ऐसा समझकर मानों उसमें निवास करती थी । धवल, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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