________________
पद्मसुन्दर सूरिविरचित
इतोऽमुतश्च धावन्तो लोकाः कलकलाकुलाः । समुज्झिताभ्यकर्तव्याः प्रणेमुस्तं कृतादराः ||९|| स एष भगवान् पार्श्वः साक्षाज्जङ्गमभूधरः । यद्दृष्ट्या फलिते नेत्र यच्छुत्या सफले श्रुती ॥१०॥ यश्चिन्तितोsपि चित्तेन जन्मिनां कर्मसंक्षयम् । कुरुते स्मरणान्नाम्नो यस्य पूतो भवेज्जनः ॥ ११ ॥ सोऽयं घनाञ्जनश्यामस्त्यक्तरङ्गः सनातनः । निष्क्रामो विचरत्येष दिष्ट्या दृश्यः स एव नः ॥ १२ ॥ एवमुत्कि लोकाः पार्श्वदर्शनलालसाः । अहं पूर्विकया जग्मुर्विदधाना मिथःकथाम् ॥१३ । रतनं घयन्तं काऽषि स्त्री त्यक्त्वाऽभावत् स्तनंधयम् । प्रसाधितैकपादाऽगात् काचिद् गलदलतका ॥ १४॥ खल भुक्तेति काऽप्याह पश्यन्ती भगवन्मुखम् । काsपि मनसामग्रीमदमत्य गतान्तिकम् ॥ १५ ॥ केsपि पूजां वितन्वन्तः पौराः कौतुकिनः परे । गतानुगतिकाश्चान्ये पार्श्व द्रष्टुमुपागमन् ॥ १६॥
की इच्छा से, इधर-उधर दौड़ते हुए, शोरगुल मचाते हुए, अपने अन्य कार्यों को छोड़ते हुए, भादरपूर्वक उस पार्श्व को प्रणाम करने लगे । (१०) वह भगवान् पार्ष साक्षात् चलते-फिरते पर्यत हैं ( अर्थात् जङ्गम होने पर भी अचल हैं ), इसके कारण ही उन्हें देखने से दोनों नेत्र सफल हो गये तथा उन्हें सुमने से दोनों कान भी तृप्त हो गये । (११) मन से उनका चिन्तन करने पर वे जन्मचारियों के कर्म का क्षय कर देते हैं; उनके नामस्मरण मात्र से मनुष्य पवित्रात्मा हो जाता है । (१२) गाद काजल के समान काले, आसक्ति से रहित, सनातन, निष्काम ऐसे वे (वा) विचरण कर रहे हैं। हमारा सौभाग्य है कि उनका ही दर्शन हमें सुलभ हुआ ।' (१३) इस प्रकार सोचते epaper के साथ पार्श्व के दर्शनों के इच्छुक व्यक्ति 'मैं पहला हूँ, मैं पहला हूँ, ऐसे वचन बोलते हुए और आपस में चर्चा करते हुए गये । (१४) कोई महिला अपने स्तनपान करते हुए बच्चे को ही छोड़कर दौड़ी । कोई एक ही पैर में महवर लगाये हुए दौड़ने लगी और कोई गलते हुए अलते वाली स्त्री दौड़ रही थी । (१५) किसो स्त्री ने भगवान् को देखकर 'तृप्त हो गई' ऐसा कहा । कोई महिला स्नान सामग्री को भी पटककर ( पार्श्व के ) पास पहुँची । (१६) कोई नागरिक पूजा करते हुए, कुछ दूसरे कौतुहलवश और अन्य दूसरे देखादेखो पार्श्व को देखने पहुँचे
के मुख
।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
१०३
www.jainelibrary.org