Book Title: Parshvanatha Charita Mahakavya
Author(s): Padmasundar, Kshama Munshi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 250
________________ पद्मसुन्दरसुरिविरचित इति श्रीमत्परापरपरमेष्ठिपदारविन्दमकरन्दसुन्दररसास्वादसम्प्रीणितभव्यभव्ये पं० श्रीपद्ममेरुविनेय पं० पदमसुन्दरविरचिते श्रीपार्श्वनाथमहाकव्ये श्रीपावनिर्वाणमङ्गले नाम सप्तमः सर्गः ॥ इति श्रीमान् परमपरमेष्ठी के चरणकमलरूपी मकरन्द के सुन्दर रस के स्वाद से भव्यजनों को प्रसन्न करने वाले, पं० श्रीपद्ममेरु के शिष्य पं० श्रीपद्मसुन्दरकवि द्वारा रचित श्रीपार्श्वनाथमहाकाव्य में "श्रीपानिर्वाणमंगल' नामक सातवाँ (अन्तिम) सर्ग समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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