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पद्मसुन्दरसूरिविरचित शास्त्रेऽधीती राजविद्याप्रगल्भस्तिस्रस्तस्मिन् शक्तयः प्रादुरासन् । पाइगुण्येऽसौ लब्धबुद्धिप्रचारो रेजे राजा सामदानादिदक्षः ॥८॥ विप्रस्तत्रैवाभवद् विश्वभूतिः श्रौत-स्मार्ताचारविद् राजमान्यः । इज्यादानादिक्रियाकर्मठोऽसौ शिष्टाचारो वेद-वेदाङ्गवेत्ता ॥९॥ तत्कान्ताऽऽसीदेकपत्नी सुशीला नाम्ना सैवाणु धरीति प्रसिद्धा । भुजानायां रम्यभोगान् स्वभा जातं पुत्रद्वैतमस्यां क्रमेण ॥१०॥ आसीत् ज्येष्ठः कमठस्तत्प्रमदा शीलशालिनी वरुणा । मरुभूतिस्तु कनीयांस्तनयोऽस्य वसुन्धरा पत्नी ॥११॥ गृहीतविद्यौ जनकात् सुतौ तौ षडङ्गविज्ञौ च विदांवरेण्यौ । श्रुतिस्मृतिस्फारितचक्षुषो स्व
क्रमोचिताचारविचारदक्षौ ॥१२॥ (८) वह राजा अरविन्द शास्त्र का अध्ययन करने वाला, राजविद्या में कुशल था तथा उसमें तीनों रानशक्तियाँ (-प्रभुत्वशक्ति, मन्त्रशक्ति तथा उत्साहशक्ति) विद्यमान थीं। वह सामदानादि में दक्ष था तथा (संधि आदि) षड्गुण विधान में उसकी बुद्धि अत्यन्त विकसित थी। इस प्रकार उक्त क्रिया में कुशल वह सजा शोभायमान था । (९) उसी नगर में श्रुति (=वेद ) और स्मृति (=धर्मशास्त्र) में विहित सदाचार का ज्ञाता, राजा द्वारा सम्मानित, यज्ञ, दान व अध्ययनादि क्रिया में कुशल, शिष्टाचारसम्पन्न तथा वेद-वेदाज का ज्ञाता विश्वभति नामक एक ब्राह्मण रहता था ॥ (१०) उस ब्राह्मण की शुभलक्षणों वाली अणुधरी माम से प्रसिद्ध धर्मपत्नी थी। अपने पति के साथ सांसारिक वैभव को भोगते हुए उसके क्रमश: दो पुत्र उत्पन्न हुए ॥ (११) ज्येष्ठ पुत्र कमठ था। वरुणा उसकी शीलसम्पन्न पत्नी थी। तथा छोटा पुत्र मरुभूति था, व वसुन्धरा उसकी पत्नी थी ।। (१२) अपने पिता विश्वभूति से उन दोनों पत्रों ने विद्या प्राप्त की थी। वे षडङ्ग (-वेद के छः अग) के ज्ञाता थे, विद्वानों में वरेण्य थे, श्रुति-स्मृति से विकसित नेत्रनाले थे तथा अपने कुलकमोचित आचार-विचार में दक्ष थे ।
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