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जेम्स डी आलविस ने अपने एक निबन्ध में लिखा है कि इन सभी सम्प्रदायों पर जैन धर्म का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है अतः सिद्ध है, कि महावीर से पूर्व जैन धर्म विद्यमान था ।
डॉ० जैकोबी के पश्चात् कोलब्रुक, स्टीवेन्सन एडवडे, टामस डॉ० बेलवलकर, दासगुप्ता, डॉ० राधाकृणान् (Indian philosophy, Vol. I, p. 287 ), शापैन्टियर, नोट, मजमुदार, इलियट ओर पुसिन आदि अनेक पाश्चास्य एवं पौर्वात्य विद्वानों ने भी यह सिद्ध किया है कि भगवान महावीर से पूर्व एक निर्ग्रन्थ विद्यमान था और उस सम्प्रदाय के प्रधान भगवान पार्श्वनाथ थे ।
सम्प्रदाय
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डॉ० वाशम के मतानुसार भगवान महावीर को बौद्ध पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किया गया है, अतएव उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है ही, इसके साथसाथ श्रीपाश्व को जैन धर्म के तेइसवे तीर्थंकर के रूप में याद
किया जाता है ।
डॉ० चाल शार्पोटियर ने लिखा है- "हमें इन दो बातों का का भी स्मरण रखना चाहिए कि जैन धर्म निश्चित रूपेण महावीर से प्राचीन है। उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्श्व प्रायः निश्चतरूपेण एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं, एवं परिणामस्वरूप मूल सिद्धान्तों की मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्र रूप धारण कर चुकी होंगी | 24
मेजर जनरल फर्लांग ने ऐतिहासिक शोध के पश्चात् लिखा है - " उस काल में सम्पूर्ण उत्तर भारत में एक ऐसा अतिव्यवस्थित, दार्शनिक, सदाचार एवं तप-प्रधान धर्म अर्थात् जैन धर्म अवस्थित था, जिसके आधार से ही ब्राह्मण एवं बौद्धादि धर्मों के
1. वही, पृ०९
भगवान पार्श्व, देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पूना, १९६९. ६१-६७
3 As he (Vardhaman Mahavira) is referred to in the Buddhist Scriptures, as one of the Buddha's chief opponents, his historicity is beyond doubt.. Parswa was remembered as twenty-third of the twenty four great teachers or Tirthankaras (Fordmakers) of the Jaina faith". The Wonder That was India, A.L. Basham, London, reprinted 1956. pp. 287-288
We ought also to remember both the Jain religion is certainly. older than Mahavira, his reputed predecessor Pärshva having almost certainly existed as a real person. and that, consequently. the main points of the original doctrine may have.
been codified
long before Mahavira,"
Charpentier,
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The Uttaradhyayana Sätra, Jarl 1922, Introduction, p. 21.
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