Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ [5] कि लक्षण (= ४–१–२ सूत्र) में निर्दिष्ट चतुर्थी विभक्ति एकवचन के /- ङे/ जैसे एक ही सामान्य प्रत्यय से /-य/; /-स्मै/; /-ऐ/; /-यै/; /-ए/; /- अम् / इत्यादि उपरूपघटक (allomorphimes) कैसे निष्पन्न किये जा सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पाणिनि ने एक ही सामान्य रूपघटक ( = प्रत्यय) से विभिन्न उपरूपघटक निष्पन्न करने के लिए 'स्थान्यादेशभाव की युक्ति' का प्रयोग किया है जैसे कि (१) रामाय : प्रकृति में सम्प्रदान कारकत्व, एवं एकत्व संख्या होने से ह्रस्व अकारान्त अङ्ग रूपप्रक्रिया राम + सुप् है 1) Jain Education International राम + राम + रामा + ङे तदर्थवाचक चतुर्थी वि० एकवचन का प्रत्यय ↑ (यहाँ पर 'स्थानिवद्भाव' से 'ङे' में रहनेवाला प्रत्ययत्व, 'य' आदेश में आरोपित होता ङे स्थानिन् के स्थान में आदेश (संयोजन) य = रामाय य विधिसूत्र (१) चतुर्थी सम्प्रदाने । २-३-१२ से चतुर्थीविभक्ति का विधान (२) (३) - स्वौजसमौट्० 1 ४ - १ - २ सूत्रोक्त प्रत्ययशृङ्खला में से चतुर्थी वि० के प्रत्ययों का चयन किया जाता है । ङेर्यः । ७-१-१३ सूत्र से कहा जाता है यदि प्रकृति का स्वरूप "ह्रस्व अकारान्त" है तो, 'ङे' प्रत्यय के स्थान पर 'य' आदेश होता है । (४) स्थानिवद् आदेशो ऽनल्विधौ । १-१५६ सूत्र से 'ङे' प्रत्यय में, अर्थात् स्थानी में, रहनेवाला 'सुप् प्रत्ययत्व' नामक गुणधर्म आदेशभूत 'य' में आरोपित किया जाता है । (५) सुपि च । ७३-१०२ सूत्र से यजादि सुप् प्रत्यय परे रहते ह्रस्व अकारान्त अङ्ग को दीर्घ होता है । राम → रामा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98