Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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[52] गया है ।19 अतः पाणिनि ने स्थान-स्थान पर भाषायाम् – छन्दसि, प्राचि - उदीचि, संज्ञायाम्, पूजायाम्, क्षेपे, गर्हायाम्, आशिषि, प्रहासे इत्यादि शब्दों का प्रयोग करके पूरे भौगोलिक क्षेत्र, सामाजिक सन्दर्भ एवं भाषाभेद इत्यादि का परिवेश ध्यान में रखते हुए ही संस्कृतभाषा का वर्णन किया है । इस तरह व्यापक रूप से भाषा का वर्णन करते समय उन्होंने अर्थवैशिष्ट्य को ही लक्ष्य में रखा है । वाग्व्यवहार में प्रयुक्त होनेवाली भाषा में से व्याकरणिक अर्थ तो प्राप्त होते ही हैं, लेकिन उन्हीं अर्थों के साथ जो भौगोलिक एवं सामाजिक परिवेश रूप अर्थ अनिवार्य रूप से जुड़े रहते हैं उनकी उपेक्षा कोई भी विचक्षण वैयाकरण नहीं कर सकता । पाणिनि इस तरह के अर्थवैविध्य का परीक्षण एवं निरूपण करनेवाले प्रबुद्ध वैयाकरण हैं । 2.3.1 अर्थ के रूप में भौगोलिक परिवेश :
पाणिनि के अनेक सूत्रों में 'प्राक्' एवं 'उदक्' शब्दों के द्वारा "पूर्व भाग के प्रदेशों में" एवं "उत्तरभाग के प्रदेशो में" कैसे कैसे शब्दों का प्रयोग होता है, इसकी पूरी गवेषणा की है और भाषाप्रयोग में जो भूगोल एक अर्थ के रूप में प्रतिबिम्बित होता है उसको सूत्रबद्ध किया है । उदाहरण के लिए - एक प्राचां देशे । १-१-७५, उदीचां वृद्धाद् अगोत्रात् । ४-१-१५७, जनपदे लुप् । ४-२-८१ पुष्करादिभ्यो देशे । ५-२-१३५ इत्यादि । ___उत्तरी प्रदेशो में 'आम्रगुप्त:' का पुत्र ‘आम्रगुप्तायनिः' कहलाता है और पूर्वदिशा के प्रदेशों में उसीको 'आम्रगुप्तिः' कहा जाता है - ऐसा उदीचां वृद्धाद् अगोत्रात् । ४-१-१५७ सूत्र से निर्दिष्ट किया है ।20 काशिकाकारने इस सन्दर्भ में एक श्लोक लिखा है :19. पाणिनि का व्याकरण मूलतः आदेशात्मक (Prescriptive) प्रकार का व्याकरण नहीं है।
वह तो केवल वर्णनात्मक (Descriptive) प्रकार का ही है। परन्तु कालान्तर में विभिन्न ग्रन्थों के टीकाकारों ने "इदम् अपाणिनीयम्", "इदं पाणिने नुमतम्"; 'इदम् असाधु' इत्यादि लिख कर पाणिनिसम्मत रूप का दुराग्रह दिखाया । अतः पाणिनि के व्याकरण को बाद में आदेशात्मक प्रकार का व्याकरण माना गया है । काशिकावृत्ति में प्रत्येक सूत्र का अर्थप्रदर्शन करते समय "भवति, भवतः, या भवन्ति' का प्रयोग मिलता है । लेकिन बाद में भट्टोजि दीक्षितने सिद्धान्तकौमुदी में प्रत्येक सूत्र का अर्थ बताते समय - स्यात् - स्याताम् – स्युः (ऐसा होना चाहिए/किया जाय) का प्रयोग
किया है - वह ध्यातव्य है । 20. (सूत्रार्थः) - वृद्धं यच्छब्दरूपमगोत्रम्, तस्मादपत्ये फिञ् प्रत्ययो भवत्युदीचामाचार्याणां मतेन
४-१-१५७ इत्यत्र काशिकावृत्तिः ॥
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