Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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[65] (२) पाणिनि ने जो जो अर्थ-प्रदर्शन किया है वह अनेक प्रकार का है । यहाँ पर 'अर्थ'
का स्वरूप केवल लिङ्ग वचनादि रूप व्याकरणिक स्वरूप का ही नहीं है । मनुष्यजीवन
में मनोगत भावादि स्वरूप विशिष्ट प्रकार का अर्थ भी शब्द से अभिधेय होता है । (३) पाणिनि का व्याकरण केवल 'शब्दनिष्पादक तन्त्र' स्वरूप का ही नहीं है, वह 'वर्णनात्मक
प्रकार' का भी व्याकरण है । अत: उसमें भौगोलिक परिवेश, सामाजिक परिस्थिति, विशिष्ट संभाषण सन्दर्भ, पुराकथाशास्त्रीय एवं दार्शनिक, सांस्कृतिक सन्दर्भादि स्वरूप अर्थ भी
उल्लिखित हुए है। (४) रूप साधनिका के दौरान इन विभिन्न प्रकार के अर्थों से पाणिनिने अनेकविध कार्य सम्पन्न
किये है । सामान्यतः अर्थ को रूप प्रक्रिया के आरम्भ बिन्दु पर ही रखा गया है; परन्तु कुत्रचित् रूपप्रक्रिया के पूर्वोक्त पाँच सोपान में से तृतीय-चतुर्थ सोपान पर भी, अर्थ
को निमित्त बनाकर कुछ ध्वनिविकारादि का कार्य सम्पन्न किये जाते है । (५) 'वाक्यपदीय' जैसे उपजीव्य ग्रन्थ के आधार पर 'वैयाकरणभूषण( सार)' एवं 'वैयाकरण
सिद्धान्तमञ्जूषा' इत्यादि ग्रन्थो की रचना की गई है । ऐसे ग्रन्थो में जो शब्दार्थ की विचारणा प्रस्तुत की गई है वह केवल व्याकरणिक अर्थों का ही विश्लेषण है । (जैसे कि – धात्वर्थ-निर्णय, सुबर्थ-निर्णय, लकारार्थ, तिङर्थ निर्णय इत्यादि) और इन अर्थों में पारस्परिक विशेष्य-विशेषणभावादि रूप सम्बन्ध बताकर शाब्दबोध की प्रक्रिया का विचार किया है । वहाँ पर (भूषण-मञ्जूषादि ग्रन्थों में) पाणिनि द्वारा चर्चित सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, संभाषणसन्दर्भादि रूप विभिन्न अर्थों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है।
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