Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 50
________________ __ [41] (क) पाक-क्रिया रूप अर्थ में (= अर्थ को व्यक्त करने के लिए) 'डुपचष्' प्रकृति प्रयुक्त होती है; और (ख) वर्तमान काल में अमुक क्रिया हो रही है, ऐसा व्यक्त करने के लिए धातु के बाद लट् प्रत्यय को रखा जाता है । इस तरह आरम्भ में, निश्चित ‘क्रिया' एवं 'काल' रूप अर्थ व्यक्त करने की वक्ता की इच्छा को ध्यान में रखकर, उक्त दोनों अर्थों को व्यक्त करने में सक्षम प्रकृति + प्रत्यय का चयन किया जाता है । अब रूपसाधनिका के द्वितीय सोपान पर एक तीसरा अर्थ (कर्तृकारक या कर्मकारक या भाव रूप अर्थ) कैसे सन्निविष्ट होता है ? वह देखेंगे : + | लट् सकर्मक अकर्मक ल् (अ, ट् इत्संज्ञक, लोप) वक्ता की विवक्षा को ध्यान में रखते हुए अब लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः । ३-४-६९ सूत्र से पूछा जाता है कि - कर्तरि कर्मणि उपरिनिर्दिष्ट ल् प्रत्यय क्या 'कर्ता' अर्थ में प्रयुक्त (मान लो कि विवक्षा से कर्तृकारक करना चाहते हो या 'कर्म' अर्थ में ?? को व्यक्त करना निर्धारित किया गया है ।) यहाँ पर 'कर्तृकारक' रूप या 'कर्मकारक' रूप विवक्षितार्थ ल् प्रत्यय (और उसके स्थान पर आदिष्ट तिबादि तिङ् प्रत्यय) से व्यक्त होगा ऐसा तृतीय सोपान पर निर्धारित किया जाता है । ___ अब चतुर्थ सोपान पर जब - पच् + लस्य । ३-४-७७ के अधिकार में, तिप्-तस्-झि..... इड्-वहि महिङ् । ३-४-७८ सूत्रोक्त तिङ् प्रत्ययों का विधान होने पर, 7. "राम लकड़ी से चावल पकाता है" (कर्तरि प्रयोग) - ऐसा कहना चाहते हो, कि "राम के द्वारा चावल पकाया जाता है" (कर्मणि प्रयोग) ऐसा कहना चाहते हो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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