Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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[22] यहाँ पर जो ध्यानास्पद है, वह यह है :(क) पाणिनि ने विभाषा । २-१-११ सूत्रोक्त अधिकार के नीचे जो समास विधायक
सूत्र रखें हैं, वे सब वैकल्पिक हैं । (इस अधिकारसूत्र को शास्त्र में 'महाविभाषा' के नाम से जाना जाता है ।) इस का फलितार्थ यह हुआ कि - विग्रहवाक्य के विकल्प में सामासिक पद से भी अर्थाभिव्यक्ति हो सकती है, उसको मान्यता
प्रदान की गई है। (ख)समास-प्रक्रिया के आरम्भबिन्दु पर कोई न कोई विग्रहवाक्य ही अन्तःस्तरीय रचना
के रूप में होता हैं । और बाद में उसी विग्रहवाक्य को तोड़ कर; अर्थात् विग्रहवाक्यान्तर्गत पदों के विभक्तिप्रत्ययों को हटाकर 'एकार्थीभाव' सिद्ध किया
जाता है।
(ग) यहाँ विग्रहवाक्य के पदों का समासवृत्ति में परिवर्तन करने के लिए, रूपान्तरण के
जो नियम प्रस्तुत किये गये हैं, उनमें से कतिपय ऐसे हैं :- प्राक् कडारात्समासः । २-१-३, २-२-३८, सुपो धातुप्रातिपदिकयोः । २-४-७१, प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् । १-२-४३ और उपसर्जनं पूर्वम् । २-२-३०, द्वन्द्वे घि । २-२-३२,
अल्पाचतरम् । २-२-३४ इत्यादि । 2.1.4 एकशेष रूपा वृत्ति : ___पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' में सरूपाणाम् एकशेष एकविभक्तौ । १-२-६४ से १-२-७३ के बीच में 'एकशेष' का प्रकरण रखा है ।1 भाषा में प्रायः सर्वत्र सरूप शब्दों में से किसी एक का ‘एकशेष' होता है, तो कदाचित् विरूप शब्दों में से किसी एक का 'एकशेष' होता है । विरूप शब्दों में से किस का एकशेष होता है, वह स्त्री पुंवच्च । १-२-६६, पुमान् स्त्रिया । १-२-६७, पिता मात्रा । १-२-७० इत्यादि सूत्रों से निर्दिष्ट है । उदाहरण के लिए -
(क) राम + राम + राम + जस् (प्रथमा विर्भाक्ति बहुवचन) 11. द्वन्द्व समास के दो ही भेद है : (१) इतरेतर द्वन्द्व, और (२) समाहार द्वन्द्व । ('एकशेष
द्वन्द्व' जैसा कोई स्वतन्त्र तीसरा भेद नहीं है ।) अतः समास को एक वृत्ति मानने के बाद, 'एकशेष' को पृथक् वृत्ति मानने की क्या जरूरत थी ? ऐसी शङ्का को कोई स्थान ही नहीं है ।
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