Book Title: Paniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Author(s): Vasantkumar Bhatt
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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से परे, सुप् विभक्ति प्रत्यय उत्पन्न होने का अवकाश पैदा होता है। 5. अब ऐसे कृदन्त, तद्धितान्त, समासादि रूप वृत्तिजन्य शब्द (एक नये विवक्षित वाक्य में) किसी न किसी कारक का अभेदमूलक विशेषण रूप 'अर्थ' बन कर प्रविष्ट हो जायेंगे । जैसा कि - निम्न चित्र से दिखाई देता है :
5. विशेषण रूप अर्थ बन कर नये वाक्य में प्रवेश
___4. पुनः प्रातिपदिक संज्ञा
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पाणिनीय व्याकरण तन्त्र
3 कृत्-तद्धित-समासादि रूप नये शब्द का निर्माण
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2 रूपान्तर के नियम 7
1. विग्रह वाक्य
उत्तर गोलार्ध में निर्दिष्ट 1 से 5 क्रम में बताई गई प्रक्रिया के बाद, पाणिनीय व्याकरणतन्त्र के पूर्व गोलार्ध में निर्दिष्ट प्रक्रिया फिर शुरू हो जाती है ! इस तरह पाणिनीय-व्याकरणतन्त्र सतत चक्रवत् घूमता रहता है । ____ यहाँ पर, उत्तर गोलार्ध में जो विधियाँ प्रस्तुत होती है वे (समर्थः पदविधिः । २-१-१ सूत्रनिर्दिष्ट)5 "पदोद्देश्यक विधियाँ" कहलाती है । 2.1.0 पदोद्देश्यक विधियों (अर्थात्-पञ्चधा वृत्तियों) का परिगणन :
पाणिनि ने अपने 'अष्टाध्यायी' व्याकरण में एक तो वाक्यनिष्पत्ति की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया है और, दूसरी ओर उसी वाक्य के अन्तर्गत आये हुए सुबन्त एवं तिङन्त पदों 5. केचित्तु पदोद्देश्यकः पदत्वसंपादको वा सर्वोऽपि पदसम्बन्धित्वात् पदविधिरेवेति वदन्ति ।
२-१-१ इत्यत्र महाभाष्ये उद्द्योतः, पृ. ३१३.
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