Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
(३) चञ्चूर्यते । 'चर गतिभक्षणयो:' (भ्वा०प० ) । 'चरफलोश्च' (७।४।८७) से अभ्यास को 'नुक्' आगम, 'नश्चापदान्तस्य झलि' (८/३/२४) से न् को अनुस्वार और 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:' (८/४/५७) से अनुस्वार को परसवर्ण (ञ) होता है। 'उत्परस्यात:' (७।४।८८) से अभ्यास से परवर्ती चर् के अ को उकार आदेश है और 'हलि च' (८/२/७७) से उसे दीर्घ होता है।
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(४) जञ्जप्यते । 'जप व्यक्तायां वाचि, मानसे च' (भ्वा०प० ) । 'जपजभदहदशभञ्जपशां च' (७/४/८६ ) से अभ्यास को 'नुक्' आगम होता है। 'न्' को पूर्ववत् अनुस्वार और उसे परसवर्ण होता है।
(५) जञ्जभ्यते । 'जभी गात्रविनामे' (भ्वा०आ०) । यहां पूर्ववत् 'नुक्' आगम, अनुस्वार और उसे परसवर्ण होता है।
(६) दन्दह्यते। 'दह भस्मीकरणे' (भ्वा०प०)। यहां पूर्ववत् नुक् आगम, अनुस्वार और उसे परसवर्ण होता है।
(७) दन्दश्यते । 'दशि दंशनदर्शनयो:' ( चु०आ० ) । यहां पूर्ववत् 'नुक्' आगम, अनुस्वार और उसे परसवर्ण होता है।
(८) निजेगिल्यते । गृ+यङ् । नि+गिर् + गिर्+य । नि+जि+गिर् +य । नि+जे+गिल्+य। निजेगिल्य । निजेगिल्य+लट् । निजेगिल्य+शप्+त। निजेगिल्य+अ+ते । निजेगिल्यते ।
यहां 'मॄ निगरणें' (तु०प०) धातु से इस सूत्र से 'यङ्' प्रत्यय है। 'ऋत इद्धातो:' (७ 1१1१००) से धातु को इकार - आदेश, 'उरण् रपरः ' (१1१1५०) रपरत्व होता है । 'सन्यङो:' (६।१।९) से गिर् को द्वित्व होता है । 'कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के ग् को ज् होता है। 'गुणो यङ्लुको:' (७।४।८२ ) से अभ्यास को गुण होता है 'प्रो यङि' (८ 1२ 120 ) से गिर् के रेफ को लत्व होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । णिच (अर्थविशेषे स्वार्थे च ) -
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(२१)
सत्यापपाशरूपवीणातूलश्लोकसेनालोमत्वचवर्मवर्णचूर्णचुरादिभ्यो णिच् । २५ ।
प०वि०-सत्याप-पाश-रूप- वीणा - तूल श्लोक - सेना-लोम-त्वचवर्म- चूर्ण- चुरादिभ्य: ५। ३ णिच् १।१ ।
स०-चुर आदिर्येषां ते चुरादयः । सत्यापश्च पाशश्च रूपं च वीणा च तूलश्च श्लोकश्च सेना च लोम च त्वचं च वर्म च वर्णं च चूर्णं च चुरादयश्च ते सत्याप०चुरादयः, तेभ्य-सत्याप०चुरादिभ्यः (बहुव्रीहिगर्भिततरेतरयोगद्वन्द्वः) ।
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