Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 173
________________ (१६१) तं तिअसगणवइ, सारगुणहि पावन तं धरणिधरवश्॥१७॥ खिजिअयं ॥ तित्थवरपवत्तयं तमरयरदिवे, धीरजणथुअञ्चिअं चुअकलिकलुसं । संतिसुहप्पवत्तयं तिगरणपयर्ड, संतिमहं महामुणिं सरणमुवणमे ॥ १७ ॥ललिअयं॥विणणयसिररश्अंजलिरिसिगणसंथुअं थिमिश्र, विबुदादिवधणवश्नरवश्थुअमदिअच्चिअं बहुसो । अश्रुग्गयसरयदिवायरसमदिअसप्पनं तवसा, गयणंगणवियरणसमुश्अचारणवंदिअं सिरसा ॥१०॥ किसलयमाला ॥ असुरगरुलपरिवंदिरं, किन्नरोरगनमंसिअं । देवकोडिसयसंथुअं, समणसंघपरिवंदि॥०॥ सुमुदं ॥ अनयं अणदं, अरयं अरुयं । अजिअं अजिअं, पयर्ड पणमे ॥१॥ विअविलसिअं॥ आगया वरविमाणदि ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232