Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s):
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
(२०२)
नीचा उतारी जयवीयराय पूरा कदेवा; पठी उन्ना थ बे पग वच्चे चार आंगल अंतर राखी बे हाथे अंजली करी "अरिहंत चेश्याणं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ ऊससिएणं” कही एक नवकारनो कानस्सग्ग करवो. पडी नमो अरिहंताणं कही, 'नमोऽहतसिकाचार्योपाध्यायसर्वसाधज्यः' कही, थोयजोमामांनी पहेली थोय कदेवी.'
॥ अथ गुरुवंदन करवानो विधि ॥ प्रथम बे खमासण दईश्वकार सुहराइ' थी सुखशातापूवी पडीखमासमण दर्शश्वाकारेण संदिसह नगवन् अनुहिरोमि अब्लितर राश्यंखामेजं? कही अनुहि कदेवो. पलीपञ्चरकाण करवू,
॥ अथ पच्चरकाण पारवानो विधि ॥ प्रथम "इरियाव दियाए” पमिकमी, यावत् “ जगचिंतामणि" नुं चैत्यवंदन " जयवीयराय” सुधी करवं.
पली "ममह जिणाण” नी सज्जाय कही, मुहपत्ति पमिलेहवी. पठी खमासमण दश 'श्छाकारेण संदिसह जगवन्! पच्चरकाण पारुं?'
१ बपोर पीना वखतमां देवसियं कहेवू.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232