Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s):
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
(२११) णीने वमिल अगर तेनो आदेश मागी पोते सज्जाय कहे. पनी एक नवकार गणी उन्ना थर खमासण द" श्वा० संदि० जग कुस्करकयकम्मरकयनिमित्तं कानस्सग्ग करूं ? श्वं पुस्करकयकम्मरकयनिमित्तं करेमि कानस्सग्गं” एम कही अन्नत्था कही संपूर्ण चार लोगस्स या सोल नवकारनो काउस्तग्ग करी, पारी, नमोऽहत् कही, एक जण 'लघुशांति' कहे; अने वीजा कानस्सग्गमा सानले. पड़ी काउस्सग्ग पारी, लोगस्त कही खमासण दरियावही तस्सनत्तरी अन्नत्या कही,ए. क लोगस्स या चार नवकारनो कानस्सग्ग करी, पारी,लोगस्स कहेवो. पठी वेसी चक्कप्लाय,नमुत्थुणं,जावंतिचेश्याकही खमासण दर जावंत केविसाह, नमोऽहत्व नवसग्गहरं कही,बेहाथ ललाटे लगामी जयवीयराय कही, खमासण दक्ष, "श्चा संदिन जग० मुहपत्ति पमिलेहुँ?” कही मुहपत्ति पमिलेहवी.पछी उना थश्वे खमासमण देवा पूर्वक अनुक्रमे "छाप संदिरा नग० सामायिक पारुं ?यथाशक्ति” तथा “श्वासंदिगण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232