Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s):
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________ (20) ॥अथचनमासीप्रतिक्रमण विधिः॥ // एमां उपर कह्या मुजब पस्किनी विधि प्रमाणे करवू पण एटबुं विशेष जे बार लोगस्सना कास्सग्गने ठेकाणे वीश लोगस्सनो कास्सग्ग करवो अने परिकना शब्दने ठेकाणे चउमासीनो शब्द कहेवो तथा तपने ठेकाणे “उठेणं, वे उपवास, चार श्रांबिल, उनीवि, थाठ एकासणां, सोल बेआसणां, चार हजार सज्जाय” ए रीते कहेQ // इति // ॥अथसंवत्सरीप्रतिक्रमणविधिः॥ ॥एमां पण उपर लख्या मुजब परिकनी विधिप्रमाणे करवू; पण एटबुं विशेष जे बार लोगस्सनाकाउस्सग्गने ठेकाणे चालीश लोगस्स ने एक नवकार अथवा एकसो ने साठ नवकारनो काजस्सग्ग करवो अने तपने ठेकाणे "अहमजतं,त्रण उपवास, उ श्रांबिल, नव नीवि,बार एकासणां,चोवीस वेपासणां अनेक हजार सज्जायः"ए रीते कहे. अने परिकना शब्दने ठेकाणे संवत्ररीनो शब्द कहेवो॥इति संवचरीप्रतिक्रमणविधिः इति श्रेष्टि-देवचन्द्र लालभाई-जैनपुस्तकोद्वारे-ग्रन्थाङ्क:-~-१९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 230 231 232