Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 225
________________ ( २१३ ) थइ री प्रगट लोगस्स कहेवो. पढी खमासमण द‍ "इछाकारेण संदि०जग० चैत्यवंदन करूं ? इच्छं." एम कही बेसीने पंचांग प्रणिपाते जगचिंतामपिनुं चैत्यवंदन जयवीयराय० पर्यंत करवुं. पठी जगवानादि चारने थोजवंदन कर. पी उजा इ वे खमासमण देवा पूर्वक सज्जायनो आदेश मागी बेसीने एक नवकार गणी, जरदेसर नी सज्जा कवी. पी छकार सुहराइ सुख तपनो पाठ कदेवो, पढी "इलाकारेण संदि० जग० राश्पक्किमणे गजं ? " एम कही जमणो हाथ उपधि उपर स्थापी सवस्सवि राज्य पुञ्चितिश्र० नो पाठ कहेवो. पठी नमुत्थुणं कही उजा थइ करे मिनंते, इछा मिठामि, तस्सउत्तरी, अन्नत्थ० कही, लोगस्स या चार नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पछी लोगस्स, सबale to अन्नत्थ० कही एक लोगस्स या चार नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पढी पुरकवरदी० सुस्स जगवर्ज० वंद० अन्नत्थ कही व गाथानो या आठ नवकारनो काउस्सग्ग करवो. पढी सिद्धाणं बुद्धाणं कही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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