Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 229
________________ (१७) पेनरस दिवसाणं, पनरस राश्याणं, जंकिंचि अपत्तियं कही इलाकारेण सं० नग परिक बालो? इलोएमिजो मे परिक अश्यारो का कही "श्वाकारेण परिक अतिचार आलोठं ?” एम कही अतिचार कहिये. पठी “एवंकारे श्रावकतणे धर्मे श्रीसमकित मूल बारव्रत एकसो चोवीश अतिचार मांहे जे कोश् अतिचार पद दिवसमाहे सूदम बादर जाणतां अजाणतां ह होय. ते सव्वे मने वचने कायाए करी मिठामि मुकम्” कही "सव्वस्तवि पकिय चिंतित्र, पुनासिथ, पुचिहिय, इलाकारेण संदिसह नगवन् ! श्वं तस्स मिलामि पुकम्” कही, “इनकारि !नगवन् पसाय करी पकितप प्रसाद करोजी.” एम उच्चार करीने श्रावी रीते कहिये:-"चनत्थे णं,एक उपवास, बे बिल, त्रण नीवि, चार एकासणां, पाठ बेवासणां, बे हजार सज्जाय यथाशक्ति तपकरी प्होंचाडवो.” पठी प्रवेश कयों होय तो, 'पहि १ एक परकाणं ( अंतोपरकस्स ) पन्नरसराइंदियाणं. २ गुरु पनिक्कमेह कहे पठी. ३ तप. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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