Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s):
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
( २०८ )
वसि
-
रो कही संपूर्ण वंदित्तु कहेतुं . पण तेमां "तस्स धम्मस्स केवलिपसत्तस्स जुहि मि" ए पद बोलतां उजा य ने अवग्रहनी बहार जश्ने वंदित्तु पूरुं कर. पठी बे वांदणां देवां, बीजा वांदणामां श्रवग्रहमां उजा होइए त्यां " इछाकारेण संदिसह जगवन् - ब्लुमिनिंतर देवसि खामेतं ? वं खामि देवसिां" कहीने जमणो हाथ चरबला उपर स्थापी जंकिंचि अपत्ति इत्यादि पाठ बोलतां अन्नुहि खामवो. पठी अवग्रह बहार नीकलीने वे वांदणां देवां वीजं वदणुं पूरुं याय त्यारे अवग्रहनी बहारनी कली, आयरिय उवज्जाए कहेतुं पढी करेमि ते ०श्छामि गमि० तस्स उत्तरी, अन्नत्थ० कही, वे लोगस्स अथवा न वने तो आठ नवकारनो काउस्सग्ग कवो. ( शांति के खराब स्वप्नना काउस्सग्ग शिवाय बीजी बधी जगोए लोगस्सना ज्यां ज्यां काउस्सग्ग यावे त्यां त्यां 'चंदेसु निम्मलयरा' सुधी जगणवानुं ध्यानमा राखतुं ) पढी पारीने लोगस्स, सबलोए अरिहंत चेइ० श्र
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232