Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 219
________________ (२७) उक” ए पाठ कदेवो. (प्रतिक्रमणमां दरेक आदेश वमीलज मागे ते न होय तो. श्रावक पोते मागे. या वात पीविकारूपे सर्वत्र योजवी.) पनी उना थइ 'करेमिन्नते श्वामिगमि काउसग्गं जोमे देवसि अश्यारो'कही तस्सउत्तरी० अन्नत्थ कही, अतिचारनी आठ गाथानो, अने ते न आवडे तो आठ नवकारनो काउसग्ग करी, पारी, प्रगट लोगस्स कदेवो. पडी बेसीने त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ति पमिलेहवी.पबी उन्नाथश्ने बे वांदणां देवा, तेमां बीजा वांदणा वखते अवग्रह बहार नीकलवू नहि. बीजुं वांदणुं पूरूं थये "श्चा० सं० न देवसियं आलो?"कही, जो मे देवसिउँ अश्रोनो पाठ कहेवो. पठी 'सात लाख' अने 'अढार पापस्थानका' कहेवा. पठी 'सबस्सवि देवसिथ उचिंतिय उन्नासिय उच्चियि श्छा संदि० नग छ तस्स मिछामि उक” एम कही वीरासने अथवा न आवडे तो जमणो ढींचण उचो राखी एक नवकार करेमि कही, श्वामि पडिकमिजं, जो मे दे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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