Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 213
________________ ( २०१ ) ये नेत्र सामायिक करवा होय तो त्रण पूरा ये एक वार पार, एवी प्रवृत्ति बे. एक सामटा दश सामायिक करवां होय तो त्रण त्र सामायिक सुधी या विधि जाणवो. ' ॥ चप्रथ चैत्यवंदन करवानो विधि ॥ प्रथम त्रण खमासमण दइने पछी " इछाकारेण संदिसह जगवन् ! चैत्यवंदन करूँ?" कही, ''कही, चैत्यवंदन, जंकिंचि० कही, पठी बे कुणी पेट उपर राखी बे हाथ जोमी अंजली करी 'नमुत्थुणं' कहेवुं. पी मुक्ताशुक्तिमुद्राए ( वे हाथ पोला जोमी, माथा सुधी उंचा राखी ) 'जावंति चेथाई' कही, खमासमण दइ तेज मुद्राए जावंतके विसाहू कही, पठी अंजली करी 'नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुज्यः' तेमज उवसग्गहरं० अथवा गमे ते सुविहितनुं करेलुं स्तवन कहेतुं. पबी मुक्ताशुक्तिमुद्राए जयवीयराय श्रजवमखंमा सुधी कहीं हाथ जरा १ लगोलग सामायक लेबुं होय त्यारे बीजुं त्रीजुं सामायिक लेतां 'सज्झाय करूं' ना बदले 'सज्जायमां बुं एम कही ऋण नवकारना बदले एक नवकार गणवो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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