Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s):
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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(१७) दनाविनवत्रयीश ! ॥२३॥ किंवा मुधाऽहं बहुधा सुधाजुकपूज्य! त्वदने चरितं स्वकीयम्।जल्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप-निरूपकस्त्वं कियदेतदत्र ? ॥ २४ ॥ __ शार्दूलविक्रीडितबन्दः॥ दीनोधारधुरन्धरस्त्वदपरो नास्ते मदन्यः कृपा-पानं नात्र जने जिनेश्वर! तथाऽप्येतांन याचे श्रियम्। किंवदन्निदमेव केवलमहो सदोधिरत्नं शिवं, श्रीरत्नाकर ! मङ्गलैकनिलय ! श्रेयस्कर प्रार्थये ॥२५॥ ॥ इति रत्नाकरपञ्चविंशतिका संपूर्णा ॥
अथ सामायिक लेवानो विधि. प्रथम स्थापनाचार्यजी न होय तो उंचे श्रासने पुस्तक आदि ज्ञानादिनुं उपकरण मुकीने श्रावक तथा श्राविकाए कटासणुं मुहपत्ति अने चरवलो लश्शुल वस्त्र सहित थर, जग्या पुंजी कटासणुं पाथरी, ते उपर बेसी, मुहपत्ति डाबा
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