Book Title: Panchpratikramanadi Stotrani
Author(s): 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 210
________________ (१८) दाथमां मुख पासे राखी, ते मे मुख ढांकी, जमयो हाथ धो स्थापनाजी सन्मुख राखीने एक नवकार तथा पंचिदिय कहेवा. पठी खमासमण द इरियावहि तस्सउत्तरी अन्नत्यऊस सिए कढ़ी एक लोगस्सनो चंदेसु निम्मलयरा सुधी (लो गस्स न आवडे तो चार नवकार) नो काउस्सग्ग करवो. नमो अरिहंताणं पद बोली काउस्सग्ग पारी लोगस्स कवो.प । खमासमण दइ" इवाकारे संदिसह जगवन् ! सामायिक मुहपत्ति पहिलेहुं?" कही कांइक विराम लइ इ कहीं पचीस बोल १ सेनप्रश्नना पाठप्रमाणे स्थापना त्रण नवकारे अने उत्थापना एकनवकारे. २ सूत्रार्थतत्त्वकरी सद्दढुं ? सम्यक्त्वमोहनीय मिश्रमोहनीय मिथ्यात्वमोहनीय परिहरु ४, कामराग स्नेहराग दृष्टिराग १०१, सुदेव सुगुरु सुधर्म श्रादरुं १०, कुदेव कुगुरु कुधर्म प० १३, ज्ञानदर्शन चारित्र श्र० १६, ज्ञानदर्शनचारित्रविराधना प० १९, मनोगुप्ति वचनगुप्ति काय गुप्ति ० २२, मनोदएकवचनदएककायदएक प० २५, हास्यरत्यरति प० २८, जयशोकडुबा प० ३१, कृष्णलेश्या नीललेश्या कापातलेश्या प० ३४, रसगारव विगारवसातागारव ५० ३७, मायाशस्य नियाणशस्यमिथ्यात्वशस्य प० ४०, क्रोधमान प० ४२, मायालोज १०४४, पृथ्वी काय काय ते कायनीजया करूं ४७, वायुकाय वनस्पतिकाय सकायनी रक्षा करूं ५०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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