Book Title: Panchastikay Part 02 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 9
________________ एक इन्द्रिय जीव:पृथ्वीकायिक, जलकायिक, वायुकायिक, अग्निकायिक, वनस्पतिकायिक। ये जीव स्पर्श को जानते हैं। दो इन्द्रिय जीव:घोंघा, शंख, सीप, पाँव-रहित (लट) आदि। ये जीव स्पर्श और रस को जानते हैं। तीन इन्द्रिय जीवःनँ, खटमल, चींटी, बिच्छु आदि। ये जीव स्पर्श, रस और गंध को जानते हैं। चार इन्द्रिय जीव:मच्छर, डांस, मक्खी, मधुमक्खी, भँवरा, टिड्डियाँ आदि। ये जीव स्पर्श, रस, गंध और वर्ण (रूप) को जानते हैं। पाँच इन्द्रिय जीवःदेव, मनुष्य, नारकी और तिर्यंच। ये जीव जल में रहनेवाले, भूमि पर चलनेवाले और आकाश में विचरण करनेवाले होते ये जीव स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द को जानते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द जीव का अचेतन द्रव्यों से भेद करते हुए कहते हैं: “जीव सबको जानता है, देखता है, सुख की इच्छा करता है, दुख से डरता है, उचित क्रिया अथवा अनुचित क्रिया करता है और उन उचित-अनुचित क्रियाओं के फल को भोगता है।'' फिर कहते हैं कि अजीव द्रव्य में सुख-दुख का अनुभव नहीं होता अथवा उचित क्रियाओं में प्रवृत्ति तथा अनुचित क्रियाओं से भय नहीं होता। जीव को तर्क से नहीं जाना जा सकता है, इसका तो प्रत्यक्ष अनुभव होता है। भिन्न-भिन्न आकारवाले अनन्त शरीरों में रहनेवाले जीवों का कोई एक निश्चित आकार इंगित नहीं किया जा सकता है। ( 2 ) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकारPage Navigation
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