Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ 152. दंसणणाणसमग्गं झाणं णो अण्णदव्वसंजुत्तं। जायदि णिज्जरहेदू सभावसहिदस्स साहुस्स।। दसणणाणसमग्गं झाणं अण्णदव्वसंजुत्तं [(दंसण)-(णाण)- दर्शन और ज्ञान से (समग्ग) 1/1 वि] पूर्ण (झाण) 1/1 ध्यान अव्यय नहीं [(अण्ण)-(दव्व)- अन्य पदार्थों से (संजुत्त) भूकृ 1/1 अनि] जुड़ा हुआ (जाय) व 3/1 अक होता है [(णिज्जरा-णिज्जर)- निर्जरा का कारण (हेदु) 1/1] [(सभाव)-(सहिद) 6/1 वि] स्वभाव-युक्त (साहु) 6/1 साधु के जायदि . णिज्जरहेदू सभावसहिदस्स साहुस्स अन्वय- दंसणणाणसमग्गं झाणं णिज्जरहेदू सभावसहिदस्स साहुस्स अण्णदव्वसंजुत्तं णो जायदि। अर्थ- दर्शन और ज्ञान से पूर्ण ध्यान निर्जरा का कारण (होता है) (और) (वह) (ध्यान) (आत्म) स्वभाव-युक्त (स्वभाव में लीन) साधु के (होता है)। (अतः) (वह) (ध्यान) (आत्मा के अतिरिक्त) अन्य पदार्थों से जुड़ा हुआ नहीं होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98