Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 64
________________ मूल पाठ 105. अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं। तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि।। 106. सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं। मोक्खस्स हवदि मग्गो भव्वाणं लद्धबुद्धीणं।। 107. सम्मत्तं सद्दहणं भावाणं तेसिमधिगमो णाणं। चारित्तं समभावो विसयेसु विरूढमग्गाणं।। 108. जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं तेसिं। संवरणिज्जरबंधो मोक्खो य हवंति ते अट्ठा।। 109. जीवा संसारत्था णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा। उवओगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा।। 110. पुढवी य उदगमगणी वाउवणप्फदिजीवसंसिदा काया। देंति खलु मोहबहुलं फासं बहुगा वि ते तेसिं।। 112. एदे जीवणिकाया पंचविहा पुढविकाइयादीया। मणपरिणामविरहिदा जीवा एगेंदिया भणिया।। 113. अंडेसु पवटुंता गब्भत्था माणुसा य मुच्छगया। जारिसया तारिसया जीवा एगेंदिया णेया।। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (57)

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