Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 63
________________ 153. जो संवरेण जुत्तो णिज्जरमाणोध सव्वकम्माणि। ववगदवेदाउस्सो मुयदि भवं तेण सो मोक्खो। जो संवरेण जुत्तो णिज्जरमाणोध सव्वकम्माणि ववगदवेदाउस्सो (ज) 1/1 सवि (संवर) 3/1 संवर से (जुत्त) भूकृ 1/1 अनि युक्त [(णिज्जरमाणो)-(अध)] णिज्जरमाणो (णिज्जर) वकृ 1/1 निर्जरा करता हुआ अध (अ) = और और [(सव्व) सवि-(कम्म) 2/2] समस्त कर्मों को [(ववगद) भूक अनि- नष्ट कर दिये गए (वेद)-(आउस्स) 1/1] वेदनीय और आयु कर्म (मुय) व 3/1 सक छोड़ता है (भव) 2/1 संसार को अव्यय इसलिए (त) 1/1 सवि (मोक्ख) 1/1 मोक्ष मुयदि भवं तेण वह मोक्खो अन्वय-जो संवरेण जुत्तो सव्वकम्माणि णिज्जरमाणोध ववगदवेदाउस्सो सो भवं मुयदि तेण मोक्खो। अर्थ- जो (जीव) संवर से युक्त (है), समस्त (घातियाः ज्ञाणावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय चार प्रकार के) कर्मों की निर्जरा करता हुआ (प्रवर्तित है) और (जिसके द्वारा) वेदनीय, आयु (नाम, गोत्र) कर्म नष्ट कर दिये गए हैं) वह (आवागमनात्मक) संसार को छोड़ देता है। इसलिए (यह स्थिति) मोक्ष (कही गयी है)। (56) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार

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