Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 42
________________ 132. सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं ति हवदि जीवस्स। दोण्हं पोग्गलमेत्तो भावो कम्मत्तणं पत्तो।। सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं ति पुण्य [(सुह) वि-(परिणाम) 1/1] शुभ परिणाम (पुण्ण) 1/1 (असुह) 1/1 वि अशुभ [(पावं)+ (इति)] पावं (पाव) 1/1 पाप इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार (हव) व 3/1 अक (जीव) 6/1 जीव के (दो) 6/2+3/2 वि दोनों के कारण [(पोग्गल)-(मेत्त) 1/1 वि] पुद्गल मात्र (भाव) 1/1 परिणमन (कम्मत्तण) 2/1 कर्मत्व को (पत्त) भूकृ 1/1 अनि प्राप्त हुआ हवदि जीवस्स दोण्हं . पोग्गलमेत्तो भावो । कम्मत्तणं होता है पत्तो अन्वय- जीवस्स सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावं ति हवदि दोण्हं पोग्गलमेत्तो भावो कम्मत्तणं पत्तो। अर्थ- जीव का शुभ परिणाम पुण्य (और) अशुभ (परिणाम) पाप होता है। (इन) दोनों (शुभ और अशुभ परिणामों) के कारण पुद्गलमात्र (पुद्गलरूप) परिणमन कर्मत्व (द्रव्यकर्म) को प्राप्त हुआ (है)। 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (35)

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