Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 52
________________ 142. जस्स ण विज्जदि रागो दोसो मोहो व सव्वदव्वेसु। णासवदि सुहं असुहं समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स। जस्स नहीं ण विज्जदि रागो दोसो मोहो मोह सव्वदव्वेसु णासवदि (ज) 6/1+7/1 सवि जिसमें अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक होता है (राग) 1/1 राग (दोस) 1/1 द्वेष (मोह) 1/1 अव्यय तथा [(सव्व) सवि-(दव्व) 7/2] सभी द्रव्यों में [(ण)+(आसवदि)] ण (अ) = नहीं नहीं आसवदि(आसव) व 3/1 सक आता है (सुह) 1/1 वि पुण्य (असुह) 1/1 वि पाप [(सम)-(सुहदुक्ख) सुख-दुख में समान 6/1-7/12/1 वि (भिक्खु) 6/1-7/1+2/1 श्रमण में/को असुह समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स अन्वय- जस्स मोहो व सव्वदव्वेसु रागो दोसो ण विज्जदि समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स सुहं असुहं णासवदि। अर्थ- जिस (जीव) में मोह (आत्मविस्मृति) तथा सभी (पर) द्रव्यों में राग (आसक्ति), द्वेष (शत्रुता) नहीं है (उस) सुख-दुख में समान श्रमण में/को पुण्य-पाप (कर्म) नहीं आते हैं। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-135) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (45)

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