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136. अरहंतसिद्धसाहुसु भत्ती धम्मम्मि जा या खलु चेट्टा।
अणुगमणं पि गुरूणं पसत्थरागो त्ति वुच्चंति।।
अरहंतसिद्धसाहुसु
अरहंत, सिद्ध और साधुओं में
भत्ती
[(अरहत)-(सिद्ध)(साहु) 7/2] (भत्ति) 1/1 (धम्म) 7/1 अव्यय
भक्ति
धम्मम्मि
अव्यय
धर्म पालन में जब तक जब तक निश्चय ही प्रयत्न अनुसरण पादपूरक गुरुओं का
अणुगमणं
अव्यय (चेट्ठा) 1/1 (अणुगमण) 1/1
अव्यय (गुरु) 6/2 [(पसत्थरागो)+ (इति)] [(पसत्थ) वि-(राग) 1/1] इति (अ) = (वुच्चंति) व कर्म 3/2 अनि
गुरूणं
पसत्थरागो त्ति
शुभ राग वाक्य की शोभा कहे जाते हैं
वुच्चंति
अन्वय- जा अरहंतसिद्धसाहुसु भत्ती या धम्मम्मि खलु चेट्टा गुरूणं पि अणुगमणं पसत्थरागो त्ति वुच्चंति।।
___अर्थ- जब तक अरहंत, सिद्ध और साधुओं में भक्ति (होती है), जब तक धर्म पालन में निश्चय ही प्रयत्न (होता है) (और) गुरुओं (आचार्य व उपाध्याय) के (मार्ग का) अनुसरण (होता है) (तब तक) (ये सभी) शुभ राग कहे जाते हैं।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
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