Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 47
________________ 137. तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं दट्टण जो दु दुहिदमणो। पडिवज्जदि तं किवया तस्सेसा होदि अणुकंपा। तिसिदं प्यासे को बुभुक्खिदं भूखे को तथा दुहिदं दुखी को । देखकर जो दुहिदमणो (तिसिद) 2/1 वि (बुभुक्खिद) 2/1 वि अव्यय (दुहिद) 2/1 वि संकृ अनि (ज) 1/1 सवि अव्यय (दुहिदमण) 1/1 वि (पडिवज्ज) व 3/1 सक (त) 2/1 सवि (किवया) 3/1 अनि [(तस्स)+(एसा)] तस्स (त) 6/1 सवि एसा (एता) 1/1 सवि (हो) व 3/1 अक (अणुकंपा) 1/1 पडिवज्जदि पादपूरक दुखी मनवाला स्वीकार करता है उसको करुणा से किवया तस्सेसा उसके यह होदि अणुकंपा होती है दया अन्वय- जो तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं दह्ण दु दुहिदमणो किवया तं पडिवज्जदि तस्सेसा अणुकंपा होदि। अर्थ- जो (कोई) (जीव) प्यासे को, भूखे को तथा (किसी) दुखी को देखकर दुखी मनवाला (होता हुआ) करुणा (भाव) से (दुख दूर करने के लिए) उसको स्वीकार करता है, उस (जीव) के यह दया होती है। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (40)

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