Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 36
________________ 126. संठाणा संघादा वण्णरसप्फासगंधसद्दा य। पोग्गलदव्वप्पभवा होंति गुणा पज्जया य बहू।। संठाणा (संठाण) 1/2 संघादा (संघाद) 1/2 वण्णरसप्फासगंधसद्दा [(वण्ण)-(रस)-(प्फास) (गंध)-(सद्द) 1/2] अव्यय पोग्गलदव्वप्पभवा [(पोग्गल)-(दव्व) (प्पभव)' 1/2] (हो) व 3/2 अक (गुण) 1/2 (पज्जाय-पज्जय) 1/2 आकार संहनन वर्ण, रस, स्पर्श, गंध और शब्द और पुद्गल द्रव्य से उत्पन्न होनेवाले होती हैं गुण पर्यायें गुणा पज्जया अव्यय और (बहु) 1/2 वि अनेक अन्वय- पोग्गलदव्वप्पभवा संठाणा संघादा य वण्णरसप्फासगंधसद्दा य बहू गुणा पज्जया होति। अर्थ- पुद्गल द्रव्य से उत्पन्न होनेवाले हैः (विभिन्न) आकार, (कई प्रकार के) संहनन (शरीर) और (भाँति-भाँति के) वर्ण, रस, स्पर्श, गंध और शब्द (तथा) (पुद्गल द्रव्य से) अनेक गुण और पर्यायें (भी उत्पन्न) होती हैं। 1. समास के अन्त में अर्थ है- 'उत्पन्न होनेवाला'। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (29)

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