Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 39
________________ 129. गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायंते। तेहिं दु विसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो वा।। गदिमधिगदस्स शरीर देहादो इंदियाणि जायते इन्द्रियाँ तेहिं [(गर्दि) + (अधिगदस्स)] गदिं (गदि) 2/1 गति को अधिगदस्स (अधिगद) 6/1 वि प्राप्त (जीव) के (देह) 1/1 (देह) 5/1 शरीर से (इंदिय) 1/2 (जाय) व 3/2 अक उत्पन्न होती हैं (त) 3/2 सवि उनसे अव्यय और [(विसय)-(गहण) 1/1] विषयों का ग्रहण (त) 5/2 सवि उनसे (राग) 1/1 अव्यय (दोस) 1/1 विसयग्गहणं तत्तो रागो BE अव्यय अन्वय- गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायंते दु ते विसयग्गहणं वा तत्तो रागो व दोसो। - अर्थ- गति को प्राप्त (जीव) के शरीर (होता है), शरीर से इन्द्रिय उत्पन्न होती हैं और उन (इन्द्रियों) से विषयों का ग्रहण (होता है) और उ. (विषयों) से राग तथा द्वेष (हो जाता है)। (32) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार

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