Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 35
________________ 125. सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदभीरुत्तं। जस्स ण विज्जदि णिच्चं तं समणा बेंति अज्जीवं।। सुहदुक्खजाणणा वजाणणा वा हिदपरियम्म और अहिदभीरत्तं जस्स [(सुह)-(दुक्ख)- सुख और दुख का (जाणणा) 1/1] अनुभव करना अव्यय अथवा [(हिद) वि-(परियम्म) 1/1] उचित का निष्पादन अव्यय [(अहिद)-(भीरुत्त) 1/1] अनुचित (क्रियाओं) से भय (ज) 6/1-7/1 सवि जिसमें अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक होता है अव्यय सदैव (त) 2/1 सवि (समण) 1/2 श्रमण (बू-बे) व 3/2 सक कहते हैं (अज्जीव) 2/1 अजीव नहीं विज्जदि णिचं उसको समणा बेंति अज्जीवं अन्वय- जस्स सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदभीरुत्तं ण विज्जदि समणा णिच्चं तं अज्जीवं बेंति। अर्थ- जिस (द्रव्य) में सुख और दुख का अनुभव करना (नहीं होता) अथवा उचित का निष्पादन (नहीं होता) और अनुचित (क्रियाओं) से भय (भी) नहीं होता है, श्रमण सदैव उस (द्रव्य) को अजीव कहते हैं। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) (28) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार

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