Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ 119. खीणे पुव्वणिबद्धे गदिणामे आउसे य ते वि खलु। पापुण्णंति य अण्णं गदिमाउस्सं सलेसवसा।। खीणे पुव्वणिबद्धे गदिणामे आउसे य और खलु (खीण) 7/1 वि क्षीण हो जाने पर [(पुव्व) वि पूर्वकाल में बाँधा हुआ (णिबद्ध) भूक 7/1 अनि] (गदिणाम) 7/1 गतिनाम कर्म (आउस) 7/1 आयु कर्म अव्यय (त) 1/2 सवि वे अव्यय अव्यय निश्चय से (पापुण्णंति) व 3/2 सक अनि प्राप्त करते हैं अव्यय (अण्ण) 2/1 वि [(गदि)+(आउस्स)] गदि (गदि) 2/1 गति को आउस्सं (आउस्स) 2/1 आयु को [(स) वि-(सा-लेस)1- अपनी लेश्या के (वस) 5/1 वि] अधीन होने के कारण पापुण्णंति य और अण्णं गदिमाउस्सं अन्य सलेसवसा अन्वय- पुव्वणिबद्धे गदिणामे य आउसे खीणे खलु ते वि सलेसवसा अण्णं गदि य आउस्सं पापुण्णंति। अर्थ- पूर्वकाल में बाँधा हुआ गतिनाम कर्म और आयु कर्म के क्षीण हो जाने पर निश्चय से वे ही (जीव) अपनी लेश्या के अधीन होने के कारण अन्य गति को और आयु को प्राप्त करते हैं। 1. यहाँ छन्द पूर्ति हेतु 'लेसा' का लेस' किया गया है। (22) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98