Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
106. सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं।
मोक्खस्स हवदि मग्गो भव्वाणं लद्धबुद्धीणं।।
सम्मत्तणाणजुत्तं
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान युक्त चारित्र राग-द्वेष रहित
चारित्तं रागदोसपरिहीणं
[(सम्मत्त)-(णाण)(जुत्त) भूकृ 1/1 अनि] (चारित्त) 1/1 [(राग)-(दोस) (परिहीण) भूकृ 1/1 अनि] (मोक्ख) 6/1 (हव) व 3/1 अक (मग्ग) 1/1 (भव्व) 4/2 वि (लद्धबुद्धि) 4/2 वि
मोक्ष
मोक्खस्स हवदि
मग्गो
मार्ग
भव्वाणं लद्धबुद्धीणं
भव्यों के लिए प्राप्त बुद्धिवाले
अन्वय- सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं मोक्खस्स मग्गो लद्धबुद्धीणं भव्वाणं हवदि।
अर्थ- सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान युक्त चारित्र (जो) राग-द्वेष रहित (है) (वह) मोक्ष-मार्ग है। (और) (वह) (मोक्षमार्ग) (भेदज्ञान) प्राप्त बुद्धिवाले भव्यों के लिए (होता है)।
(10)
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98