Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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115. जूगागुंभीमक्कुणपिपीलिया विच्छियादिया कीडा।
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा।
जूगागुंभीमक्कुण- [(जूगा)-(गुंभी)-(मक्कुण)- नँ, कनखजूरा, पिपीलिया (पिपीलिया) 1/2] खटमल, चींटी . विच्छियादिया [(विच्छिय)-(आदिय) 1/2] बिच्छु आदि
'य' स्वार्थिक
कीडा
(कीड) 1/2
कीड़े
जाणंति
(जाण) व 3/2 सक
जानते हैं
फासं
स्पर्श
गंधं
(रस) 2/1 (फास) 2/1 (गंध) 2/1 [(ते) वि-(इंदिय) 1/2] (जीव) 1/2
गंध तीन इन्द्रिय
तेइंदिय
जीवा
जीव
अन्वय- जूगागुंभीमक्कुणपिपीलिया विच्छियादिया कीडा फासं रसं गंधं जाणंति जीवा तेइंदिया।
अर्थ- नँ, कनखजूरा, खटमल, चींटी, बिच्छु आदि कीड़े स्पर्श, रस (और) गंध को जानते हैं। (इसलिए) (वे) जीव तीन इन्द्रिय (कहे गये हैं)।
(18)
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
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