Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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116. उसमसयमक्खियमधुकरभमरा पतंगमादीया । रूवं रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणंति ।।
उसमसयमक्खिय- [ ( उद्दस ) - (मसय) -
मधुकरभमरा
पतंगमादीया
(मधुकर) - (भमर) 1 / 2]
[(पतंगमा) + (आदिया)]
पतंगमा (पतंगम) 1 / 2
आदिया (आदि ) 1/2
'य' स्वार्थिक
(रूव) 2/1
(रस) 2/1
अव्यय
(गंध) 2/1
( फास) 2 / 1
अव्यय
(त) 1/2 सवि (विजाण) व 3/2 सक
अन्वय
उद्दसमसयमक्खियमधुकरभमरा पतंगमादीया ते फासं रसं
गंधं च रूवं विजाणंति ।
अर्थ- मच्छर, डांस, मक्खी, मधुमक्खी, भँवरा, टिड्डियाँ आदि (जो) (जीव ) ( हैं ) वे स्पर्श, रस, गंध और रूप को जानते हैं। (इसलिए वे जीव चार इन्द्रिय जानने चाहिये) ।
2:43. 3.
रूवं
रसं
च
गंध
फासं पुण
化
(मक्खिया - मक्खिय) -
1_
विजाणंति
मच्छर, डांस, मक्खी, मधुमक्खी, भँवरा
टिड्डियाँ
आदि
रूप
रस
पादपूरक
गंध
स्पर्श
और
वे
जानते हैं
1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'मक्खिया' का 'मक्खिय' किया गया है।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ - अधिकार
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