Book Title: Panchastikay Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ 112. एदे जीवणिकाया पंचविहा पुढविकाइयादीया । मणपरिणामविरहिदा जीवा एगेंदिया भणिया ।। ए जीवणिकाया पंचविहा पुढविकाइयादीया [ ( पुढविकाइय) वि (आदिय) 1/2 ] 'य' स्वार्थिक (एद) 1/2 सवि [(जीव) - (णिकाय) 1/2] [ (पंच) वि - (विह) 1/2] मणपरिणामविरहिदा [(मण) - (परिणाम) - जीवा एगें दिया भणिया नोट: ये जीव- समूह पाँच प्रकार पृथ्वीकायिक आदि मन-स्वभाव से (विरहिद) भूक 1/2 अनि ] वियुक्त / रहित (जीव) 1 / 2 जीव [ ( एग) वि - (इंदिय) 1 / 2] (भण) भूक 1/2 अन्वय- एदे पंचविहा पुढविकाइयादीया जीवणिकाया मणपरिणामविरहिदा एगेंदिया जीवा भणिया । अर्थ- ये पाँच प्रकार के पृथ्वीकायिक आदि जीव-समूह मन-स्वभाव से वियुक्त / रहित एकेन्द्रिय जीव कहे गये ( हैं )। एकेन्द्रिय कहे गये पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ - अधिकार 111 नम्बर की गाथा का अनुवाद नहीं किया गया है। यह गाथा आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित नहीं मानी गई है। (15)

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98