Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Author(s): Ramjit Jain
Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut

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Page 8
________________ लेखकीय कथन प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाशजी, फिरोजाबाद वालों से मेरा पत्राचार-परिचय तो था, साक्षात्कार नहीं हुआ था। श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (तीर्थ संरक्षिणी) महासभा का अधिवेशन ग्वालियर में कुछ वर्ष पूर्व हुआ था। उस समय उक्त महासभा की ओर से ग्वालियर में शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था। पांच जगह शिक्षण शिविर लगे थे। उनमें से एक शिविर श्री दि. जैन मन्दिर, चम्पाबाग में लगा था, जहां प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जी आध्यात्मिक अध्यापन छहढाला का करा रहे थे। मैं उनसे मिलने गया, क्योंकि उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धाभाव थे। शिक्षण चल रहा था। मैं उनकी क्लास में जाकर बैठ गया। जब शिक्षण समय समाप्त हुआ और प्राचार्य जी उठ कर जाने लगे तो मैंने उनके पास जाकर अपना परिचय दिया, तो प्राचार्य जी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ गले लगा लिया और वे भाव-विभोर हो गये। इस आत्मीयता से मेरा हृदय गद्गद् हो गया। प्राचार्यजी मेरे रिश्तेदार श्री लालमणिप्रसाद 'मणि' के यहां ठहरे थे। श्री लालमणिप्रसाद जी श्री भारतवर्षीय दि. जैन (तीर्थ संरक्षिणी) महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। श्री नीरज जी सतना वाले भी आये थे और वहीं ठहरे थे। __ मैंने प्राचार्य जी एवं श्री नीरज जी को भोजन हेतु निमंत्रण दिया, जिसे सहर्ष स्वीकार किया। अस्वस्थ हो जाने के कारण नीरज जी नहीं आए। प्राचार्य जी से भोजन के उपरान्त चर्चा हो रही थी कि यकायक उन्होंने प्रश्न किया कि आपने अनेक जातियों के इतिहास लिखे हैं, कहीं पद्मावतीपुरवाल जाति की भी कोई जानकारी मिली है? चूंकि मेरे पास कई जैन जातियों के बारे में जानकारी नोट थी, फलतः एक रजिस्टर पतला-सा, जिसमें पद्मावतीपुरवाल जाति की जानकारी लिखी थी-वह मैंने उन्हें दिखाया।

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