Book Title: Padmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas Author(s): Ramjit Jain Publisher: Pragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय आज की हमारी नई पीढ़ी महाकवि रइधू या सन्तकवि ब्रह्मगुलाल के नाम से परिचित नहीं है, इसमें उनका क्या दोष है! अपने गौरवपूर्ण इतिहास का परिचय उन्हें सुलभ कराने का दायित्व हमारे पूर्वजों का था, जिसे वह निभा नहीं सके। जिस जाति का इतिहास संरक्षित नहीं हो पाता, वह जाति भविष्य में प्रगति की दौड़ में पिछड़ने लगती है। अपने पूर्वजों की यश गाथाओं को पढ़-सुनकर युवाओं में नया उत्साह उत्पन्न होता है तथा वे भी ऐसे कार्य करने के लिए उत्साहित होते हैं, जिनसे पूर्वजों के द्वारा छोड़ी हुई विरासत की आभा मंद न होने पाए तथा उनकी कीर्ति अक्षुण्ण बनी रहे। इतिहास के मनीषी विद्वान श्री रामजीत जैन एडवोकेट ने प्रस्तुत कृति तैयार कर एक बड़े अभाव की पूर्ति की है। इसके लिए उनके प्रति जितनी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, वह कम ही है। अपने समाज के ख्यातिलब्ध विद्वान प्रा. नरेन्द्रप्रकाशजी को भी हम अपने शतशः अभिवादन प्रेषित करते हैं, जिनके स्नेहपूर्ण सौजन्य से इस कृति को प्रकाशित करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है। धन्यवाद है भाई ब्रजकिशोर जैन का, जिन्होंने इस कृति के अपेक्षित परिवर्धन में हमारी यथेष्ट सहायता की है। इतिहास की इमारत खड़ी करना एक जटिल कार्य है। किसी एक व्यक्ति के बूते से तो बाहर की ही बात है। हमें सामग्री-संकलन मेंPage Navigation
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