Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 11
________________ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ सारे भाव मुझसे पर हैं। पणाए चित्तव्यो जो बट्टा सो अहं तु णिच्छयदो। अवसेसा जे भावा ते मज्म परे ति णादम्वा ।। पष्णाए चित्तब्यो जो णादा सो अहं तु णिच्छयदो। भवसेसा जे भावा ते मज्म परे ति णादम्वा । ध्यान क्यों ? __ज्ञाता को जानने का अर्थ है, उसे सर्वत्र और सर्वात्मना जानें, निरावरण रूप में जानें । ध्यान इसीलिए किया जाता है कि आवरण समाप्त हो जाए, हम ज्ञाता को सर्वात्मना जान लें। ध्यान का अर्थ कोरी एकाग्रता ही नहीं है। उसका अर्थ है निर्मलता युक्त एकाग्रता । निमलता के अभाव में जो एकाग्रता सधती है, वह ध्यान तो है किन्तु आत-रौद्र ध्यान है। निर्मलता है वीतरागता । राग-द्वेष का न होना ही ध्यान है । यह ज्ञाता को जानने का सबसे बड़ा साधन है। ज्ञाता को वही व्यक्ति जान सकता है, जो वीतराग है। जब तक वीतरागता नहीं आएगी तब तक आवरण बना रहेगा। जब तक आवरण रहेगा तब तक विघ्न और बाधाएं प्रस्तुत होती रहेंगो, आत्म-साक्षात्कार संभव नहीं बन पाएगा। ऐसी स्थिति में किसी माध्यम से जानना होगा। यदि माध्यम कमजोर होता है तो वह भ्रम भी पैदा कर देता है । महत्त्वपूर्ण कथन आत्म-साक्षात्कार का होना सहज नहीं है। राग-द्वेष की लहरें निरन्तर उठती रहतो हैं। उन लहरों में जिसका मन चंचल नहीं होता, बहता नहीं है, वही व्यक्ति आत्मा को देख सकता है । इसके बिना उसका दर्शन संभव नहीं बनता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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