Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 58
________________ जात्मा और परमात्मा ५१ I कभी देव बनता है । तीसरी सचाई है - कर्म । कर्म के बिना पुनर्जन्म का कोई हेतु नहीं बनता । चौथी सचाई है - बंध और मोक्ष । जो कर्म को जानता है, वह पुण्य और पाप को जान लेता है, बन्ध और मोक्ष को जान लेता है । पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष - ये चार मूल सूत्र पकड़ में आ जाते हैं तो मोक्ष की प्रक्रिया समझ में आ जाती है । जिसने इन चार सूत्रों को पकड़ .लिया, जीवन का पूरा चित्र उसके सामने आ गया । जीव : मोक्ष जीवन के रहस्यों को कोई नहीं जानता । जो वर्तमान में हो रहा है, आदमी उसे ही जानता है । वह अतीत को भी पूरा नहीं जानता, भविष्य को तो जानता ही नहीं है । हम जीवन के शेष सारे रहस्यों को छोड़कर मूलभूत चार रहस्यों को पकड़ लें- जीव है, पुनर्जन्म है, कर्म है, बंध और मोक्ष है । कर्म बंध रहा है, वह बंधते- बंधते रुक गया और मोक्ष हो गया । मोक्ष और परमात्मा क्या है ? जब तक कर्म बंध रहा है तब तक आत्मा आत्मा है, जीव है । जिस क्षण कर्म का बंध समाप्त हो गया, आत्मा परमात्मा बन गया, जीव का मोक्ष हो गया । मोक्ष की व्याख्या जैन दर्शन में मोक्ष की जो व्याख्या की गई है, उसका अर्थ है - आत्मा का अपने रूप में अवस्थित हो जाना मोक्ष है । न कोई स्थान का नाम है- मोक्ष और न कोई धाम का नाम है - मोक्ष । न शरीर से संबंध, न पुद्गल से संबंध और न पदार्थ से संबंध । इन सबसे संबंध-विच्छेद हो जाना ही परमात्मा होना है । जैन दर्शन की परमात्मा संबंधी जो अव 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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