Book Title: Navtattva Adhunik Sandarbh Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 61
________________ ૪ नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ जो व्यक्ति स्थूल जगत् के बटखरों से सूक्ष्म जगत् को तोलना चाहता है, वह सदा भ्रांति में रहता है । सम्यग् दृष्टि वह होता है, जो स्थूल जगत् के नियमों को स्थूल जगत् में और सूक्ष्म जगत् के नियमों को सूक्ष्म जगत् में लागू करता है । जब आत्मा परमात्मा बन जाती है तब उसका स्थूल जगत् के नियमों से सम्बन्ध टूट जाता है । उस स्थिति में केवल अस्तित्व रहता है और अस्तित्व पर व्यक्तित्व का नियम लागू नहीं होता । प्रश्न है आनंद का एक बड़ा प्रश्न है - जब परमात्मा कर्ता नहीं है तो वह अनंतकाल तक बैठा-बैठा क्या करेगा ? क्या उसे ऊब और थकान नहीं आएगी ? इस प्रश्न का होना स्वाभाविक है । हम हलचल भरे जीवन को ज्यादा पसंद करते हैं । हमने यह मान लिया है- तोड़-फोड़ करना, लड़ना-भिड़ना, इधर-उधर की हमें इसमें रस है, 1 करते रहना, यही जीवन का आनंद है। इसलिए हम शेष को नीरस मान लेते हैं । हमें इस नियम का पता नहीं चलता - अपने अस्तित्व में होना परमात्मा होना है, परम आनन्द में होना है । वे जो लोग मोक्ष के संदर्भ में ऐसा प्रश्न उठाते हैं, नहीं उठाते ? एक अवस्था में रहता है, निगोद के संदर्भ में इस प्रश्न को क्यों एकेन्द्रिय जीव अनंतकाल तक उसी अव्यक्त जीवन जीता है । क्या वह एक ही हुआ थकता नहीं है ? जीव अनंतकाल तक है । यदि वह अनंतकाल मोक्ष में रह जाए बात है ? Jain Education International अवस्था में रहता निगोद में रहता तो कौनसी बड़ी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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